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कविता

प्रेम

कुमार अनुपम


पृथ्वी के ध्रुवों पर

हमारी तलाश

एक दूसरे की प्रतीक्षा में है

अपने अपने हिस्से का नेह सँजोए

 

नदी-सी बेसाख्ता भागती तुम्हारी कामना

आएगी मेरे समुद्री धैर्य के पास

एक-न-एक दिन

 

हमारी उम्मीदें

सृष्टि की तरह फूले-फलेंगी।


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